शिलालेख – पत्थरो पर इतिहास की जानकारी अंकित करना |
Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!प्रशस्ति – शिलालेख का समुह जो किसी राजा की प्रशंसा में लिखा गया हो |
शिलालेख का अध्ययन – एपिग्राफी
प्रारम्भिक शिलालेखो की भाषा – संस्कृत/राजस्थानी
मध्यकालीन शिलालेखो की भाषा – उर्दू/ फ़ारसी
शिलालेखो की शैली – गध्य/पध्य (चम्पू शेली)
शिलालेखो की लिपि – महाजननी/हर्षकालीन/नागरी लिपि
लेखो का प्रारम्भ सम्राट अशोक के काल में हुआ तथा अशोक ने इस कला को ईरान से सिखा था
राजस्थान के लेखों का सर्वेक्षण “भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग” करता है | इस विभाग की स्थापना 1861 में हुए तथा उस समय इसका संस्थापक एलेक्जेंडर कनिघम था तथा मु ख्यलय दिल्ली में था | इसका पुनर्गठन 1902 में जॉन मार्शल के समय हुआ था |
राजस्थान में पुरातत्त्व सर्वेक्षण का कार्य सर्वप्रथम 1871 ई. ए. सी.एल कलाईल ने प्रारम्भ किया था | वर्ष 2019 की रिपोर्ट तक कुल 162 लेख है |
2019 – 20 मे मेवाड महाराणा राजसिंह के काल के लेख (1677 ई) धोईय/धोईन्द राजसमंद से प्राप्त हुए हैं |
2020 में दधिमती माता मंदिर गोठ मांगलोद नागौर से जोधपुर शासक सुरसिंह के काल के लेख मिला है |
कुछ महत्वपूर्ण शिलालेख व प्रशस्तियों के बारे मे जानेंगे ।
बडली शिलालेख (अजमेर)
- 443 ई. पू. भीलोट माता मंदिर से यह लेख प्राप्त हुआ था |
- इसकी खोज जी. एच ओझा(गोरी शंकर ओझा) ने की थी |
- यह राजस्थान का सबसे प्राचीन लेख है |
- इस में अजमेर के साथ-साथ चित्तौड़गढ़ के भी जैन धर्म के प्रचार प्रसार की भी जानकारी मिलती है |
बिजोलिया शिलालेख (भीलवाड़ा)
- 5 फरवरी 1170 ई में भीलवाड़ा के पार्श्वनाथ मंदिर की दीवार से प्राप्त हुआ था |
- इस लेख के रचियता गुणभद्र था जैन श्रावक लोलक ने लिखवाया व उत्किरणकर्ता केशव कायस्थ था |
- इस लेख की भाषा संस्कृत है ओर 32 श्लोक में लिखा गया है |
- इस लेख में अजमेर ओर सांभर के चौहानो को वत्स गोत्रीय बताया गया है |
- बिजोलिया लेख के द्वारा सांभर झील का निर्माण वासुदेव ने किया था तथा चौहान वंश का सस्थापक वासुदेव चौहान को बताया गया है |
- इस लेख में ग्राम की इकाई प्रतिगण ओर प्रतिगण का अधिकारी महन्तम कहा गया है |
शिलालेख के कुछ उपनाम दिया गया ह
वर्तमान नाम उपनाम
- दिल्ली दिल्लीका
- नाडोल नड्डलु
- भीनमाल श्रीमाल
- जालोर जबालिपुर
- बिजोलिया विद्यावली, उपरमाल, उंटमाद्री
- नागौर अहिच्छतरगढ़
राजप्रशस्ति(राजसमंद)
- इस प्रशस्ति के रचियता रणछोड़भट्ट तैलंग है |
- यह विश्व की सबसे बड़ी प्रशस्ति है |
- यह संस्कृत भाषा में 25 काली शिलाओ पर अंकित है |
- यह प्रशस्ति 1106 श्लोक, 24 सर्ग में लिखी गयी है |
- 22,23,24 वा सर्ग जयसिंह ने लिखवाया |
- बप्पा रावल से जगत सिंह दितिया तक इतिहास वर्णित है तथा चारुमति के विवाह की जानकारी मिलती है |
- मेवाड – मुगल संधि(1615 ई) का उल्लेख मिलता है |
मानमौरी शिलालेख (चित्तौड़गढ़)
- 713 ई मे खोज कर्णल जेम्स टॉड ने की थी तथा उत्किर्नकर्ता शिवादित्य था तथा लेखक पुष्य था |
- इस शिलालेख में मौर्य वंश के चार राजाओं का उल्लेख मिलता है (1) मानमोरी (2) महेश्वर (3) भीम (4) भोज |
- मानमोरी शिलालेख में चित्तौड़गढ़ में सूर्य मंदिर का उल्लेख मिलता है तथा अमृत मंथन कथा का उल्लेख मिलता है |
- इस शिलालेख को कर्नल जेम्स टॉड ने समुंदर में फेंक दिया था |
घोसुंडी शिलालेख
- इस लेख को संस्कृत भाषा की ब्राही लिपि में लिखा गया है तथा इसकी खोज कविराजा श्यामलदास की थी |
- इस सर्वप्रथम डॉ. भंडारकर ने पढ़ा था |
- इस लेख में राजवंश के राजा सर्वलाल द्वारा अश्वमेघ यज्ञ के योजना की जानकारी मिलती है |
- इस लेख में राजस्थान के लिए है “राजस्थलीय” शब्द का प्रयोग किया गया है |
नोट – राजस्थान शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग बसंतगढ़ लेख में किया गया है |
घटियाला शिलालेख (जोधपुर)
- 861 ई. में लेखक मैग ने इस लेख को लिखा था तथा इसका उत्किरणकर्ता कृष्णश्वर है |
- इस लेख में गुर्जर प्रतिहार शासक कक्कुक के काल वर्ण व्यवस्था की गई थी |
- मग जाति के ब्राह्मणों का उल्लेख इस लेख में मिलता है तथा गुर्जर प्रतिहार वंश की इष्ट देवी चामुंडा माता का उल्लेख भी मिलता है |
- राजस्थान की प्रथम सती जोधपुर के सेनापति रानुका की पत्नी “सपल कंवर” की जानकारी भी इसी लेख में मिलती है |
नोट – गुर्जर प्रतिहार वंश का संस्थापक – हरिश्चन्द्र
गोनेर शिलालेख (गोनेर जयपुर)
- यह लेख 1776 ई. मैं जगदीश मंदिर से प्राप्त हुआ था |
- इसमे गौरक्षा हेतु हिंदू ओर मुस्लिम धर्म की कसम का उल्लेख मिलता है |
चिरवा शिलालेख (उदयपुर)
- यह लेख 1273 ई. मैं नागरी लिपि में उदयपुर से प्राप्त हुआ तथा इसका रचनाकार रत्नप्रभ सूरी है |
- इस लेख में टांळैट जाति का उल्लेख मिलता है तथा इसी जाति ने राजस्थान के वैवाहिक रिवाज तुंटिया की शुरुआत की थी |
- पशुपात योगियो द्वारा शिवरात्रि के दिन की जाने वाली क्रियाओ का उल्लेख मिलता है |
- सती प्रथा का उल्लेख मिलता है |
- इस लेख में गुहिल राजाओ को एक लिंगनाथ जी के दीवान बताया गया है |
रणकपुर प्रशस्ति (पाली)
- 1439 ई. मे मधई नदी के किनारे दैपाक ने इसकी रचना की थी |
- बप्पा रावल ओर कालभोज को इस प्रशस्ति में अलग – अलग बताया गया है |
- रणकपुर जैन मंदिर का उल्लेख भी इस प्रशस्ति में मिलता है |
बेणेश्वर शिलालेख (डूंगरपुर)
- यह लेख सोम, माही ओर जाखम नदियों के संगम पर स्थित है |
- इस लेख पर मैकेंजी ओर हिल टेकर्स के हस्ताक्षर किए गए हैं |
- यह लेख आशकरण राठौड़ के काल का शिलालेख माना जाता है |
डूंडेरा – जोगिमन शिलालेख (चूरू)
- यह लेख 1252 ई. मे संस्कृत भाषा में लिखा गया है |
- यह नदियो कि वेज्ञानिक जनकारी देता है |
- राठौड़ो ओर भाटियो के वेवाहिक संबंध का वर्णन करता है |
बङवा शिलालेख (बाँरा)
- यह लेख 238 ई. बाँरा से प्राप्त हुआ |
- इस लेख में यज्ञ महिमा की जानकारी प्राप्त होती है |
श्रृंग ऋषि का शिलालेख (उदयपुर)
- यह लेख 1428 ई. मे संस्कृत भाषा मे लिखा ग्या है तथा रचियता वाणी विलास योगेश्वर थे
- राणा मोकल के काल का लेख है ओर एक लिंगनाथ जी का मंदिर का उल्लेख है |
- मोकल ने अपनी पत्नी आबिक की मुक्ति के लिए लेख का निर्माण किया था |
- इस लेख के अनुसर राणा मोकल ने 25 बार तुलादान किया था |
कणसवा शिलालेख (कोटा)
- यहा लेख 738 ई. में राजा धवल की जानकारी मिलती है |
आमेर शिलालेख (जयपुर)
- इसकी खोज 1612 में की गई थी |
- रघुकुल तिलक शब्द का उल्लेख मिलता है |
राय सिंह प्रशस्ति (बीकानेर)
- यह प्रशस्ति राय सिंह के द्वारा लिखवाई गई थी तथा लेखक जेईता जैन थे |
- इस लेख में जूनागढ़ दुर्ग निर्माण की जानकारी मिलती है |
- रायसिंह के साहित्य प्रेम का वर्णन मिलता है |
कुम्भलगढ़ प्रशस्ति (राजसमंद)
- इसकी रचना 1460 में महेश व्यास के द्वारा की गई |
- इसकी रचना 1460 में महेश व्यास के द्वारा की गई तथा इसको संस्कृत भाषा के 64 श्लोक उल्लेखित किया गया है |
- यह कुल 5 काली शिलाओ का समुह है |
- राणा हम्मीर को विषम घाटी पंचानन कहा गया है |
कोलायत शिलालेख (बीकानेर)
- कोलायत घिल के किनारे सुजानसिंह द्वारा बनाये तीर्थ घाट का वर्णन है |
- इस लेख में कोलायत झील का उल्लुख मिलता है |
अचलेश्वर शिलालेख(सिरोही)
- इस लेख की 1285 ई. में शुभसिंह द्वारा रचना की गई थी |
- इसमे राजपूतो की उत्पत्ति अग्निकुंड से मानी गई है |
- इसमे परमारो का मूल पुरुष धर्मराज को बताया गया है |
जावर प्रशस्ति (उदयपुर)
- इसकी रचना 1797 ई. में एकनाथ द्वारा की गई तथा उत्कीर्ण विशाल द्वारा किया गया |
- इसमे रमाबाई को वागीश्वरी कहा गया है |
- रायमल ओर श्रृंगार देवी के विवाह का उल्लेख मिलता है |
- राणा कुम्भा ओर रायमल की साहित्य उपलब्धिया मिलती है |
समधीश्वर शिलालेख (चित्तौड़गढ़)
- इसको 1428 ई. मे वीसल द्वारा उत्कीर्ण किया गया था |
- इसमे हम्मीर की तुलना शंकर, महेश ओर कर्ण से की गई है |
- मेवाड के वस्तुकारो का वर्णन मिलता है |
बसंतगढ़ शिलालेख (सिराही)
- यह लेख 625 ई. मे संस्कृत भाषा में लिखा गया था तथा इसकी लिपि कुरील थी |
- यह लेख वर्तमान में राजपूताना संग्रालय अजमेर में सुरक्षित है |
बुचकला शिलालेख
- लेख की खोज 815 ई है। नानूराम ब्राघभट ने की तथा उत्खनन देआई ओर पुत्र पंचहरी ने किया था |
- इसमें संस्कृत भाषा के 20 श्लोक हैं |
- इसमे गुर्जर प्रतिहार शासक नागभट्ट प्रथम की जानकारी मिलती है |
अपराजित शिलालेख
- इसकी रचना 661 ई. मे दामोदर तथा उत्कर्ण यशोभट्ट द्वारा किया गया था |
- इस लेख मे मेवाड में 7वी सदी की राजनेतिक ओर आर्थिक स्थिति की जानकारी मिलती है|
- यह लेख G. H. ओझा ने विक्टोरिया होल अजमेर में रखावया था |
- इस लेख में गुहिलो की उत्तरोत्तर विजयो का वर्णन मिलता है |
त्रिमुकी बावडी प्रशस्ति
- इसको 1675 में दैबारी उदयपुर में राजसिंह की पत्नी रामरास ने त्रिमुकी जया बावड़ी के किनारे स्थापित करवा दिया |
- इसमे बप्पा रावल से राजसिंह तक राजाओ का नाम ओर उपलब्धि प्राप्त होती है
- चारुमति के विवाह की जानकारी प्राप्त होती है |
जनसागर प्रशस्ति
- इसको 1677 ई. बाड़ी उदयपुर में राजसिंह ने अपनी माता की स्मृति में बनवाया था |
- जनसागर तालाब के निर्माण की जानकारी मिलती है |
- इस प्रशस्ति में मेङता शासको को विष्णु का उपासक बताया गया |
संभर का लेख
- 1634 ई. हिंदी भाषा में इसका निर्माण अलवर में करवाया गया था |
- इसका जीर्णोद्धार शाहजहा ने किया था |