राजस्थान के दुर्ग

राजस्थान के दुर्ग

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राजस्थान में शायद ही कोई जनपद या आंचल ऐसा हो जहां कोई छोटा हो या बड़ा दुर्ग नहीं हो | राजस्थान में दुर्ग निर्माण की परंपरा बहुत प्राचीन काल से चली आ रही है | राजस्थान के राजाओं व सामंतों ने अपने निवास, सुरक्षा, समग्री व आक्रमण के समय अपनी प्रजा को सुरक्षित रखने, पशुधन या सम्पति को बचाने के लिए दुर्ग बनवाये |

राजस्थान प्राचीन समय से ही वीरता और शोर्य की क्रीड़ास्थली रहा है | यहाँ के प्रत्येक दुर्ग में वीर रणबांकुरो के बलिदान की गाथा समेटे हुए भव्य या विशाल दुर्ग विद्यमान है| राजस्थान को दुर्गो या गढ़ो का प्रदेश कहा जाये तो भी कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी | राजस्थान में दुर्ग निर्माण की प्राचीन परंपरा रही है | दुर्ग निर्माण का प्रमुख उदेश्य शत्रु के आक्रमण से अपने प्रदेश की रक्षा एवं निवासियो को आक्रमणकारियो बर्बरता से बचाना होता था |

यहां के किले, गढ़ एव दुर्गो में पराक्रमी शूरवीर योद्धाओ के वीरतापूर्ण कार्य से प्रभावित होकर कर्नल जेम्स टॉड ने कहा था

“There is not a petty state in Rajasthan  that has not had its Thermopylae and scarcely a city that has not produced its Lionidas”( राजस्थान में ऐसा कोई छोटा सा राज्य भी नहीं मिलेगा जहां थ्रमोपोली जेसा युद्ध नहीं हुआ हो या ना ही कोई ऐसा शहर मिलेगा जहां लियोनादास जेसा वीर पैदा ना हुआ हो)

राजस्थान के दुर्गो की विशेषताएँ

  • अधिकांश दुर्ग राजमार्गो/प्रमुख मार्गो पर बने हैं|
  • ऊंची व दुर्गम पहाड़ियों पर निर्मित है|
  • कई मिल के क्षेत्र में विस्तार है|
  • सुरक्षा के लिए अनेक प्रवेश द्वार बने हुए हैं|
  • सामुहिक जोहर के लिए स्थान बने हुए हैं|
  • जलाशयो, बावडियो वी टांको का निर्माण किया गया है|
  • किलो के भीतर सिल्हखाने(शास्त्रागार) बने हैं|

कागमुकी दुर्गवह पहाड़ी जो आगे की ओर बिल्कुल संकरी हो या पीछे की तरफ चौडी हो, ऐसी पहाड़ी पर बना दुर्ग कागमुखी दुर्ग कहलाता है| इस प्रकार के किले को सुरक्षा की दृष्टि से उत्तम मन गया है|

जेसे- मेहरानगढ़ किला (जोधपुर)|

छाजमुखी दुर्ग- जिस पहाड़ी का आगे का भाग चौड़ा हो या पीछे की तरफ से काम चौड़ा हो, छाजमुखी दुर्ग कहलाता है|

जेसे- दौसा का किला|

कोटिल्य ने दुर्गो के 4 प्रकार बताए हैं- (1) औदक दुर्ग (2) पार्वत दुर्ग (3) धान्वन दुर्ग (4) वन दुर्गमनुस्मृति ने दुर्गों के 6 प्रकार बताए हैं- (1) धनु दुर्ग (2) मही दुर्ग (3) जल दुर्ग (4) वृक्ष दुर्ग  (5) गिरि दुर्ग (6) नृ दुर्ग

दुर्गो की श्रेणियाँ –

पारीख दुर्ग- जिसके चारो ओर गहरी खाइयाँ हो | जेसे- लोहागढ़ (भरतपुर), जूनागढ़, डींग का किला आदि |

जल दुर्ग/ओदक दुर्ग वह दुर्ग जो चारो ओर से पानी से घिरा हो, जेसे-गागरोन दुर्ग (झालावाड), शेरगढ़ दुर्ग (बांरा), भेसरोडगढ़ दुर्ग (चित्तौड़गढ़)

गिरी दुर्ग- वाह दुर्ग जो किसी ऊंची पहाड़ी पर स्थित हो तथा चारो ओर से पहाड़ों से घिरा हो जैसे- चित्तौड़गढ़, रणथंभौर, जालोर, मेहरानगढ़.जयगढ़, तारागढ़ आदि |

धान्वन दुर्ग – जिसके चारो ओर मरुस्थल हो जैसे – जूनागढ़ (बीकानेर), भटनेर का किला, जैसलमेर का किला, नागौर का किला आदि |

वन दुर्ग  वह दुर्ग जो चारो ओर से वनों ओर कांटेदार वृक्षों से घिरा हो, जैसे रणथंभौर दुर्ग, सिवाना दुर्ग आदि |

सैनिक दुर्ग – जिसकी व्यूह रचना में चतुर वीरो से सुसज्जित सेना के होने से अभेद हो, सैनिक दुर्ग को सभी दुर्गो में सर्वश्रेष्ठ मन जाता है |

सहाय दुर्ग – जिसमें वीर तथा सदा साथ देने वाले बन्धुजन रहते हो |

एरण दुर्ग- जिस दुर्ग का मार्ग कांटो ओर पत्थरो का परिपूर्ण हो | जेसे- चित्तौड़ ओर जालौर का दुर्ग |

पारिध दुर्ग – जिसके चारो ओर ईंट, पत्थर ओर मिट्टी से बनी बड़ी-बड़ी दीवारों का परकोटा हो | जेसे – चित्तौड़गढ़, जैसलमेर आदि|

भूमि दुर्ग/स्थल दुर्ग- प्रस्तर खंडो या ईंटौ से समतल भूमि पर निर्मित दुर्ग |जेसे – चौमू का किला |

गिरी गहवर – गुफा के रूप में बना दुर्ग |

  • भारत में सार्वधिक दुर्ग महाराष्ट्र में है |
  • दूसरा स्थान पर मध्य प्रदेश है |
  • तीसरा स्थान राजस्थान का है|

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