तेजाजी महाराज: वीरता और धर्म के Best प्रतीक

तेजाजी महाराज: आज हम एक बहुत ही प्रसिद्ध और प्रेरणादायक व्यक्तित्व के बारे में चर्चा करने जा रहे हैं – तेजाजी महाराज। तेजाजी महाराज का नाम राजस्थान के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। उनकी कथाएं, उनके वीरता का गान, और उनके धर्मिक और सामाजिक उपदेश आज भी लोगों को प्रेरित करते हैं।

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तेजाजी महाराज का जन्म राजस्थान के नागौर जिले में हुआ था। उनका असली नाम वीर तेजा था, जिन्हें बाद में “तेजाजी” के रूप में जाना जाता है। उनके पिता का नाम भूरा मली है और मां का नाम मूलदेवी था। तेजाजी महाराज के जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा उनके वीरता के कथाएं हैं।

तेजाजी महाराज को राजपूतों के एक बहादुर और उत्कृष्ट सिपाही के रूप में जाना जाता है। उन्होंने अपनी जीवन के दौरान कई युद्धों में भाग लिया और वीरता की प्रतीक बने। उनका योगदान राजपूताना के इतिहास में अविस्मरणीय है।

तेजाजी महाराज की ब्रज के वीर गीत आज भी लोगों को उनकी वीरता और निष्ठा का प्रतीक मानी जाती है। उनके इसी भक्तिभाव से लोग आज भी उन्हें नमन करते हैं और उनके जन्म जयंती पर विशेष आयोजन करते हैं।

तेजाजी महाराज के उपदेशों में नैतिकता, सामाजिक समरसता, और धर्मिक अदालत की महत्वपूर्ण बातें शामिल हैं। उनके जीवन का संदेश आज भी हमें यह बताता है कि सच्ची भक्ति, धर्म, और नैतिकता ही एक श्रेष्ठ और समृद्ध समाज की नींव होती है।

इस प्रकार, तेजाजी महाराज एक ऐसा व्यक्तित्व थे जो न केवल अपनी वीरता से चमकते थे, बल्कि उनके उपदेश भी लोगों को मार्गदर्शन करते थे। उनकी कथाएं आज भी हमें उनके महानता की ओर आकर्षित करती हैं और हमें प्रेरित करती हैं कि हम भी उनके उपदेशों का पालन करें और एक उत्कृष्ट जीवन जीं।

तेजाजी का जीवन

लोकदेवता तेजाजी खड़नाल (नागौर परगने में) नागवंशिय जाट थे । इनका जन्म वि. सं. 1130(1070 ई.) माघ शुक्ल चतुर्दशी को हुआ था । तेजाजी के पिता का नाम ताहड़ जी व माता रामकवरी थी ।

तेजाजी महाराज की पत्नी का नाम पेमल था। वे एक समर्थ, साहसी और धार्मिक महिला थीं जो अपने पति के साथ उनके जीवन की हर कठिनाई में साथ खड़ी रहीं। उनका सहयोग और समर्थन तेजाजी के जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा। उनका संग पेमल ने तेजाजी को उनके धार्मिक और सामाजिक कार्यों में साथ दिया और उन्हें हमेशा प्रेरित किया। तेजाजी और पेमल का साथीपन एक उत्कृष्ट उदाहरण है जो साथीपन, समर्थन और साझेदारी की मिसाल प्रस्तुत करता है।

तेजाजी को परम गौरक्षा एव गायों का मुक्ति दाता माना गया है तथा तेजाजी को ‘काला व बाला‘ भी कहा जाता है । इन्होंने लांछा गुजरी की गाये मेंरो से छुड़वाने हेतु वि. सं. 1160(1103 ई.) भाद्रपद शुक्ला दशमी को सुरसुरा (किसनगढ़ अजमेर) में अपने प्राणोत्सर्ग किए ।

इनके थान पर सर्प व कुते काटे प्राणी का इलाज होता है । प्रत्येक किसान तेजाजी के गीत के साथ ही खेत मे बुवाई प्रारंभ करता है । ऐसा विश्वास है की इस स्मरण से भावी फासल अच्छी होती है।

तेजाजी विशेषत अजमेर जिले के लोक देवता है। इनके थन अजमेर जिले के सुरसुरा ,ब्यावर ,सेंदरिया एव भावंता मे है। उनके जन्म स्थान खड़नाल मे भी इनका मंदिर है । नगोर जिले के परबतसर कस्बे मे तेजाजी का विशाल मेल भाद्रपद शुक्ला दशमी को भरता है। जहां बड़ा पशु मेल भी लगता है।

जिसमे भारी मात्रा मे पशुओ की खरीद -फरोत होती है। तेजाजी की निर्वाण स्थली सुरसुरा (किशनगढ़ ,अजमेर ) मे तेजाजी की जागीर्ण निकली जाती है।सर्प दंश का इलाज करने वाले तेजाजी के भोपों को ‘घोडला ‘कहते है। तेजाजी की घोड़ी लिलण (सीणगारी ) थी।

राजस्थान मे प्राय :सभी गावों मे तेजाजी के ‘थान’ या ‘देवरे ‘ बने हुए है। देवरों पर तेजाजी की प्रतिमा हाथ मे तलवार लिए घुड़सवार के रूप मे सूर्य के साथ स्थापित की जाती है।

राज्य के लगभग सभी भागों मे लोक देवता तेजाजी को ‘सर्पों कर देवता ‘ के रूप मे पूजा जाता है। जाट जाती मे इनकी अधिक मान्यता है।

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